Friday, January 18, 2008

माँ थी उन दिनों

उन दिनों कुछ खास नही था घर में
फ्रिज़ न टीवी न ही अन्ब्रेकेबल चाय के प्याले
पर शुक्र है माँ थी तब भी...
ठंडक मिल जाती थी असीम उसके पसीने से तर आँचल की छाओं में
उसकी ममता भरी फटकार हमारा सूनापन भरती थी
और ...
किसी संग्रहालय में रखने योग्य रकाबियों में सुड़कते थे चाय
तो उसकी ही महक आती थी...
मगर आज ...जबकि क्या कुछ नही है घर में
न जाने क्यों खोजता है दिल
वैसी ही ठंडक वैसी ही रोनक वाही महक
यह जानते हुए भी कि
मां नही रही अब
-मृदुल

माँ थी उन दिनों